जब हम विकास (Development) के बारे में बात करते हैं, तो नीतियाँ (Policies) अंतिम शोस्टॉपर(Showstoppers) होती हैं—कार्यालयों में पूरी तरह से तैयार की जाती हैं, आँकड़ों से समर्थित होती हैं और ईमानदार इरादों से मज़बूत होती हैं। लेकिन जब ये नीतियाँ ड्राइंग बोर्ड से निकलकर ग्रामीण गाँव की सड़कों या भीड़भाड़ वाले शहर की गलियों में पहुँचती हैं, तो प्रभाव हमेशा वैसा नहीं होता जैसा कल्पना किया गया था।
यहीं पर व्यवहार अर्थशास्त्र (Behavioural Economics) हमें एक बड़े सत्य को दिखाता है: विकास केवल संसाधनों, बुनियादी ढाँचे और वित्त का मामला नहीं है, बल्कि यह व्यक्तियों के बारे में भी है—उनके निर्णय, दिनचर्या, पूर्वाग्रह और रोज़मर्रा की पसंद के पीछे छिपी हुई मनोविज्ञान।
नीति का मानवीय चेहरा (The Human Face of Policy)
पुराना अर्थशास्त्र कहता है कि व्यक्ति तर्कसंगत (Rational) अभिनेता होते हैं जो हमेशा अपने कल्याण को अधिकतम करने वाले विकल्प चुनेंगे। लेकिन वास्तविक दुनिया में संस्कृति, विश्वास, नुकसान का डर, अल्पकालिक आवेग और जड़ता (Inertia) व्यवहार को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, सरकार यदि जलाऊ लकड़ी की निर्भरता कम करने के लिए मुफ्त में एलपीजी (LPG) कनेक्शन उपलब्ध कराए, तो भी अधिकांश घर वापस पारंपरिक ईंधन का उपयोग करने लगते हैं। क्यों? क्योंकि व्यवहारिक बाधाएँ (Behavioural Barriers) जैसे गैस सिलेंडर को “असुरक्षित”मानना, या रोज़मर्रा के खाना पकाने की आदत बदलने में असुविधा, लोगों को रोक देती हैं।
इसलिए नीति निर्माण (Policy Design) और नीति परिणाम (Policy Outcome) के बीच का अंतर हमेशा धन या ढाँचे की कमी के कारण नहीं होता। अक्सर वजह यह होती है कि ज़मीन पर असली लोग किताबों में बताए गए ‘तर्कसंगत एजेंट’ (Rational Agents) की तरह नहीं, बल्कि इंसानों की तरह गलती करने वाले, अनुकूलनशील और सामाजिक व्यवहार करते हैं।
Nudge and Development
यहीं पर व्यवहार अर्थशास्त्र (Behavioural Economics) की ताकत दिखाई देती है। थेलर और सनस्टीन (Thaler & Sunstein) के अनुसार “Nudge” एक सूक्ष्म बदलाव है कि विकल्प कैसे प्रस्तुत किए जाते हैं, जो स्वतंत्रता को सीमित किए बिना व्यवहार को प्रभावित करता है। उदाहरण: केवल एसएमएस (SMS) द्वारा टीकाकरण (Vaccination) की तारीख याद दिलाने से भागीदारी बढ़ जाती है। शौचालय यदि रोशनी और सुविधा वाले स्थानों पर हों, तो उनका उपयोग अधिक होता है, बजाय केवल निर्माण करने के।
नीति कार्यान्वयन (Policy Implementation) में ऐसे छोटे-छोटे डिजाइन सुधार (Design Modifications) बड़े प्रभाव डाल सकते हैं। Nudges की ताकत यही है कि यह स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए मानव व्यवहार को विकास के लक्ष्यों के साथ जोड़ देता है। व्यक्ति अच्छा करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन कई बार उन्हें सही दिशा में बस एक हल्का धक्का (Nudge) देने की आवश्यकता होती है।
विश्वास, आकांक्षाएँ और सामाजिक मानदंड (Trust, Aspirations and Social Norms)
विकास केवल ढाँचों या सब्सिडी से नहीं, बल्कि अमूर्त पहलुओं से भी जुड़ा है—जैसे सरकारी कार्यक्रमों पर विश्वास (Trust), सामुदायिक आकांक्षाएँ (Aspirations) और व्यवहार को आकार देने वाले सामाजिक मानदंड (Social Norms)।
माइक्रोफाइनेंस (Microfinance) कार्यक्रम लें: ये केवल इसलिए नहीं चलते कि ऋण उपलब्ध है, बल्कि इसलिए कि समूह की ज़िम्मेदारी, सहकर्मी दबाव और साझा प्रगति की चेतना काम करती है। इसी तरह, शिक्षा (Education) कार्यक्रम तब सफल होते हैं जब माता-पिता को यह विश्वास दिलाया जाता है कि बेटियों का दाखिला केवल कानूनी अधिकार नहीं, बल्कि परिवार के सम्मान और सामाजिक उन्नति का प्रतीक है।
नीतियाँ तब विफल हो जाती हैं जब वे इन “सॉफ्ट” पहलुओं की अनदेखी करती हैं। Subsidy अपने आप में व्यवहार को नहीं बदल पाएगी, लेकिन यदि उसे सामुदायिक शिक्षा अभियानों, रोल मॉडल और विश्वास के साथ जोड़ा जाए, तो सोच और व्यवहार बदल सकते हैं।
Why Policy Outcomes Differ (नीतिगत परिणाम अलग क्यों हैं)
नीतियों के ज़मीन पर अलग-अलग परिणाम आने का एक कारण भारत की विविधता (Diversity) है। राजस्थान में सफल योजना ओडिशा में विफल हो सकती है। वजह नीति की खराबी नहीं, बल्कि व्यवहारिक संदर्भ का अलग होना है। शुष्क क्षेत्रों में जल-संरक्षण (Water Conservation) कमी की आदत से जुड़ा है, जबकि बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में यह उदासीनता (Indifference) की समस्या बन जाता है।
इसलिए विकास नीति “One-Size-Fits-All” नहीं हो सकती। इसे स्थानीय संदर्भ और व्यवहारिक वास्तविकताओं के अनुसार संवेदनशीलता के साथ तैयार करना होगा।
भारत के अनुभव एक बात साफ़ बताते हैं: विकास कभी भी एकदिशीय (Unidirectional) नहीं हो सकता। राज्य ने ढाँचे (Infrastructure) तो तैयार किए—110 मिलियन शौचालय, 90 मिलियन LPG कनेक्शन, 500 मिलियन बैंक खाते—लेकिन असली परीक्षा इस बात की है कि लोग इनका उपयोग कैसे करते हैं। NFHS-5 के निष्कर्ष दिखाते हैं कि ग्रामीण भारत का लगभग पाँचवाँ हिस्सा अब भी खुले में शौच करता है और एक-तिहाई घराने Subsidy के बावजूद पारंपरिक ईंधन का उपयोग करते हैं।
यह अंतर शिक्षा (Education) की भूमिका पर ज़ोर देता है। शिक्षित परिवार स्वच्छ ईंधन अपनाने, चिकित्सा सेवाओं का उपयोग करने और जवाबदेही की माँग करने की अधिक संभावना रखते हैं। इस प्रकार विकास तभी सफल है जब वितरण (Delivery) और जागरूकता (Awareness), तथा नीति इरादा (Policy Intention) और जन-सहभागिता (Public Engagement) मेल खाते हों।
Toward Human-Centred Development (मानव-केंद्रित विकास की ओर)
व्यवहार अर्थशास्त्र (Behavioural Economics) का योगदान यह नहीं है कि छोटे Nudges बड़ी नीतियों की जगह ले सकते हैं। बल्कि, यह बताता है कि दोनों का संयोजन ज़रूरी है। बुनियादी ढाँचे की ज़रूरत है, लेकिन यह समझना भी उतना ही आवश्यक है कि लोग उसका उपयोग क्यों नहीं कर रहे। Subsidy आवश्यक है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है कि वह गरिमा (Dignity) और विश्वास (Trust) के साथ पहुँचाई जाए।
विकास वास्तव में नागरिक (Citizen) और राज्य (State) के बीच सहयोग है। पुल का निर्माण किया जा सकता है, लेकिन उसका मूल्य तभी है जब लोग उसे पार करें। योजना शुरू की जा सकती है, लेकिन उसकी विरासत तब बनती है जब समाज उसे स्वीकार करे।
भारत के लोकप्रिय कल्याण कार्यक्रम इस बात को और स्पष्ट करते हैं।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana): लाखों महिलाओं को LPG कनेक्शन मिले, लेकिन कई परिवार पहली रिफिल के बाद भी लकड़ी का उपयोग करते रहे। कारण था Present Bias—लोग तत्काल खर्च से बच गए, भले ही लंबे समय में स्वच्छ ईंधन स्वास्थ्य लाभ देता।
- स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan): शौचालयों का तेज़ी से निर्माण हुआ, लेकिन सामाजिक मानदंडों और Status Quo Bias की वजह से उनका पर्याप्त उपयोग नहीं हुआ। कई परिवारों के लिए खुले में शौच सिर्फ़ आदत नहीं बल्कि सांस्कृतिक परंपरा थी।
- भामाशाह योजना (Bhamashah Yojana), राजस्थान: महिलाओं के बैंक खातों में पैसा डालने से तभी असर हुआ जब समाज ने महिलाओं को आर्थिक निर्णयकर्ता (Decision-Maker) के रूप में स्वीकार किया।
ये उदाहरण बताते हैं कि विकास का प्रभाव केवल इस पर निर्भर नहीं करता कि सरकारें क्या करती हैं, बल्कि इस पर भी कि नागरिक उन्हें कैसे देखते, मानते और अपनाते हैं। व्यवहार अर्थशास्त्र नीतियों को अस्वीकार नहीं करता, बल्कि यह समझने में मदद करता है कि उनका असर अलग क्यों होता है—और कैसे छोटे Nudges, विश्वास-निर्माण और सांस्कृतिक संदर्भ मिलकर इरादों को वास्तविक बदलाव में बदल सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion): लोगों के लिए नीतियाँ, न कि केवल आँकड़े (Policies for People, Not Just Numbers)
व्यवहारिक अर्थशास्त्र (Behavioural Economics) हमें याद दिलाता है कि विकास एक गहन मानवीय गतिविधि है, तकनीकी (Technical) प्रक्रिया नहीं। नीति-निर्माताओं को स्प्रेडशीट (Spreadsheet) और प्रश्नावली (Questionnaire) से आगे बढ़कर खुद से पूछना चाहिए: व्यक्ति वास्तव में इस नीति को कैसे अपनाएँगे? उनकी राह में कौन-सी बाधाएँ, चिंताएँ या दिनचर्याएँ हो सकती हैं?
मानव व्यवहार की विशेषताओं को पहचानकर नीतियों को अधिक प्रभावी, न्यायसंगत और टिकाऊ बनाया जा सकता है। आखिरकार, विकास का मूल्यांकन जीडीपी (GDP) या प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) से नहीं, बल्कि इस बात से होता है कि लोग इसे वास्तविक जीवन में कैसे अनुभव करते हैं। और सचमुच जीवन को ऊपर उठाने के लिए हमें न केवल अर्थव्यवस्था (Economy) को समझना होगा, बल्कि उसमें रहने वालों दिमाग़ और दिल को भी जानना होगा।
वास्तविक विकास योजनाओं का एकतरफ़ा (Unidirectional) प्रदान नहीं हो सकता; यह एक द्विदिश (Bidirectional) प्रक्रिया होनी चाहिए—देने और पाने की। सरकारें नेकनीयत वाली नीतियाँ बना सकती हैं, लेकिन वे तभी सफल होंगी जब व्यक्ति उनके साथ सही तरह से जुड़ें; चाहे वे व्यवहार बदलें, जवाबदेही की माँग करें या बदलाव को बनाए रखें।
यहीं पर शिक्षा (Education) की भूमिका सामने आती है। एक शिक्षित समाज नीतियों के मूल्य को समझने, उनकी कमियों को चुनौती देने और उनके वास्तविक परिणामों में सक्रिय योगदान देने में सक्षम होता है। शिक्षा अधिकारों को दायित्व (Rights into Responsibilities) और योजनाओं को वास्तविक दुनिया के सुधारों (Real-world Improvements) में बदलने की चेतना उत्पन्न करती है। यह किसी मायने में नीतिगत इरादे (Policy Intention) और नीति प्रभाव (Policy Effect) के बीच सेतु है, जो यह सुनिश्चित करता है कि विकास केवल आँकड़ों (Numbers) में न सिमटे, बल्कि राज्य और नागरिकों दोनों का साझा अनुभव बने।


Leave a Reply