विश्वविद्यालयों को ज्ञान का मंदिर और लोकतांत्रिक मूल्यों की पाठशाला माना जाता है, जहाँ न केवल शिक्षा दी जाती है बल्कि जिम्मेदार और जागरूक नागरिक तैयार किए जाते हैं। किंतु हाल के वर्षों में विश्वविद्यालय प्रशासन का तानाशाही रवैया गहरी चिंता का विषय बन गया है। प्रवेश प्रक्रिया में मनमाने बदलाव, छात्रावास शुल्क वृद्धि, अनुशासनात्मक कार्रवाइयों में कठोरता और छात्रों के वैधानिक अधिकारों की अनदेखी जैसी घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। इसका परिणाम यह होता है कि छात्र अपने अकादमिक कार्यों पर ध्यान देने के बजाय प्रशासनिक दबाव और अन्याय का सामना करने में समय व्यतीत करते हैं।
यदि यह प्रवृत्ति समय रहते नियंत्रित न की गई तो विश्वविद्यालय जागरूक और सशक्त नागरिक बनाने के बजाय दबे-कुचले और निराश व्यक्तियों की भीड़ तैयार करेंगे। ऐसे हालात न केवल छात्रों के भविष्य के लिए घातक होंगे बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और कानून के शासन की मूल भावना को भी कमजोर करेंगे। यही कारण है कि विश्वविद्यालयों में लोकतांत्रिक मूल्यों और विधिक जागरूकता को मजबूत करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
समस्या
विश्वविद्यालयों के प्रशासन द्वारा अपनाया जाने वाला तानाशाही रवैया एक जटिल समस्या है। जबकि विश्वविद्यालयों के अपने विधान, नियम और विनियम होते हैं, परंतु इनकी स्पष्ट जानकारी न तो प्रशासन को है और न ही छात्रों को। ऐसी स्थिति में ऑस्टिन द्वारा दी गई कानून की परिभाषा याद आती है कि राजा द्वारा दिया गया आदेश ही कानून है। परंतु हम एक लोकतांत्रिक समाज के हिस्से हैं, जो कानून के शासन में विश्वास करता है, न कि अलोकतांत्रिक राजा के आदेश में।
पिछले दिनों राजस्थान विश्वविद्यालय में कुछ छात्राओं के हॉस्टल की फीस बढ़ाए जाने पर वे लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन कर रही थीं। उनके खिलाफ फौजदारी मुकदमा दर्ज कर दिया गया। यह इस विश्वविद्यालय में पहली बार हुआ कि छात्राओं पर मुकदमा किया गया हो।
Ph.D. प्रवेश प्रक्रिया में परीक्षा कराने के बाद आमूलचूल परिवर्तन कर दिए जाते हैं, जबकि कानूनी रूप से प्रशासन ऐसा नहीं कर सकता। मनमाने ढंग से भाई–भतीजावाद का सहारा लेकर प्रवेश दिए जाते हैं।
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, जो कि राजस्थान का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय है, में पिछले वर्ष कई विद्यार्थियों को निष्कासित किया गया। इस पर छात्रों ने जानकारी के अभाव में कोई कानूनी कदम उठाए बिना ही प्रशासन की कार्यवाही को अंतिम मान लिया।
मैं स्वयं JRF शोधार्थी के रूप में दो साल बाद जब डीन ऑफिस में प्रार्थना पत्र लेकर गया, तो महोदय तानाशाह की तरह अड़ गए और कहने लगे कि तुम्हारा Scopus Index Journal में शोधपत्र नहीं है, इसलिए SRF नहीं हो सकता। चूंकि मैं कानून का विद्यार्थी रहा हूं, इसलिए UGC Act से लेकर University Act और Ordinance लेकर पहुंचा और पूछा—कहां लिखा है Scopus? इस पर उन्हें मेरी बात माननी पड़ी और मुझे न्याय मिल सका।
इस प्रकार की छोटी–मोटी समस्याओं का छात्र अपने जीवन में समाधान के बारे में सोचने के बजाय किस्मत को कोसते रहते हैं। इसके कारण छात्र अपने मूल कार्य को समय नहीं दे पाते और अपना समय प्रशासन को खुश करने में ही व्यतीत करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
समाधान
समस्या के निवारण हेतु संभावित समाधान यह है कि प्रथम सेमेस्टर में ही दो क्रेडिट का एक अनिवार्य कोर्स होना चाहिए, जो विश्वविद्यालयों के कानून, नियम और विनियमों के बारे में जानकारी दे, जिससे छात्र अपने अधिकारों को सुरक्षित रख सकें।
लाभ
छात्र स्वयं को विश्वविद्यालय का अभिन्न अंग मानकर शक्तिशाली महसूस करेंगे। वे अपने कर्तव्यों के बारे में जान पाएंगे और अपने अधिकारों की सुरक्षा कर पाएंगे।
सीमाएँ
प्रशासन से व्यक्तिगत शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है। परंतु नियमों का पालन करने पर यह आसानी से किया जा सकता है।
निष्कर्ष
संविधान निर्माताओं के अनुसार, हमारा संबंध उतना अच्छा साबित होगा जितने अच्छे लोग होंगे और उतना बुरा साबित होगा जितने बुरे लोग होंगे। यदि हम चाहते हैं कि हमारे देश में अच्छे नागरिक तैयार हों, जो कानून के शासन को बनाए रखने में सकारात्मक भूमिका निभा सकें, तो ऐसे नागरिक बनाने की शुरुआत विश्वविद्यालयों से ही होती है। यदि यहां दबे, कुचले, शोषित और पीड़ित छात्र रहेंगे, तो यही कल नागरिक बनकर देश में ऐसे ही लोगों की भीड़ बढ़ाएंगे।
समय रहते विश्वविद्यालयों को संविधान और कानून के शासन के अनुरूप सुधार लिया गया, तो निश्चय ही हमारा संविधान, जो विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, विश्व का सबसे अच्छा संविधान भी साबित होगा। और जब ये बुलंद हौसले और पूर्ण जानकारी से ओतप्रोत नागरिक देश संभालेंगे, तो निस्संदेह हमारा देश सबसे अच्छा देश सिद्ध होगा।
सार
विश्वविद्यालय प्रशासन की तानाशाही प्रवृत्ति छात्र–हित और लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है। इसका तत्काल समाधान आवश्यक है। यदि इस समस्या का समाधान किया जाए, तो समाज को दीर्घकालिक लाभ मिलेगा और बेहतर नागरिक तैयार होंगे।


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